Monday, February 16, 2009

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गात तो मेरा यहाँ है

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गात तो मेरा यहाँ है मन वहीं पर छोड़ आई
पार कर सात समुन्दर गाँव अपना छोड़ आई|
आ गयी इस देश में तो देश अपना याद आया.
कैसे दिन थे वहाँ के अपना बचपन याद आया|
किस्से झूठे और सच्चे मन से सुनाती थी वहाँ,
लुका छुपी के खेल मे दिन बिताती थी वहाँ|
जब यहाँ आई मुझे गाँवों की गलियाँ याद आई|
गात तो मेरा यहाँ है मन वहीं पर छोड़ आई|
चैत के महिने का मौसम, ज्येष्ठ की तपती दुपहरी,
अषाढ़ की गुरु पूर्णिमा को मैं मनाती थी जन्मदिन|
सावन के महिने की तीजे और कजरी याद है,
हाथों में रचती थी मेहदी पेड़ों के झूले याद हैं|
कार्तिक की दिवाली फाल्गुन की होली याद है,
गात तो मेरा यहाँ है, मन वहीं पर छोड़ आई|
कैसी थी दुनिया सुखद जब भाई बहन सब संग थे,
लड़ते झगड़ते थे सभी पर घर में रहते संग थे|
माँ सुनाती थी कहानी परियों के उस देश की,
कैसी थी वह माँ की ममता, यह यादें है स्वदेश की|
छोड़कर रिश्ते करीबी मैं वतन से दूर आई.
गात तो मेरा यहाँ है मन वहीं पर छोड़ आई|
माँ नें भेजा आँख भर कर उनमें कसक तड़फन भी थी,
देख पाना माँ की आँखे मन में बड़ी सिसकन भी थी|
जब किसी नें हाँथ रखकर बेटी कहा तो .
उस समय आँसू रुके ना माँ की ममता याद आई|
माँ की आँखों के वो आँसू और दादी की गोदी याद आई,
सोचती हूँ कौन सी छलना मुझे यहाँ खीच लाई|
गात तो मेरा यहाँ है मन वही पर छोड़ आई|

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