अपने बारे में क्या लिखूँ, बस लिखने पढ़ने का शौक है। पहले तो अनेक वर्षों तक कानपुर के वी एस एस डी कालेज में काम किया तथा फिलहाल 'विश्व हिंदी समिति' के काम काज में थोड़ा बहुत हाथ बँटाने का प्रयास करती रहती हूँ। हिंदी पत्रिका 'सौरभ' की सह संपादिका हूँ तथा कभी कभार कविता लिखने की कोशिश करती हूँ। कवि सम्मेलनों के चलते अमेरिका भ्रमण तथा अनेक साहित्य अनुरागियों से मिलने का अवसर मिलता रहता है। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के छात्रों को हिंदी पढ़ाने का उपक्रम भी निरंतर जारी है। इधर काफी समय से कुछ मित्र वृंद मुझसे ब्लाग बनाने की ज़िद कर रहे थे, अतः यहाँ उपस्थित हूँ।