Sunday, December 28, 2008

                               यह कैसा अमरीका है
सब साधन संम्पन्न यंहा फिर भी मन सूना - सूना है.
मन में कितना सूनापन है यह कैसा अमरीका है|
                                मातृ -भूमि को छोड़ यंहां मैं विमान चढ़ कर आयी थी,
                                कितनी ही स्म्रतियों को मैं मन में संजो कर लायी थी | 
                                 इस अमरीका की धरती पर फिर अपनें याद बहुत आए ,
                   पछ्तानें से क्या होता सब कुछ तो वह्नी छोड़ आए |
कितनी है मनमोहक दुनिया फिर भी मन सूना - सूना है |
मन में कितना सूना पन है यह कैसा अमरीका है |
                               एक स्वप्न था अमरीका में भारत नया बनानें का,
                               अपनें देश की महिमा की ध्वजा यंहा फहराने की |
                              भारत की संस्कृति को जन मानस तक पहुचानें की .
                              वेद और गीता के सार को हर घर तक ले जानें की|
लेकिन सब कुछ है विपरीत यंहां पर न संस्कृति न गीता है.
मन में कितना सूना पन है यह कैसा अमरीका है|
                              सोचा था अमरीका जाकर मैं कुबेर बन जाउंगी .
                              अपना निज का ले विमान फ़िर वतन लौट कर जाउंगी|
                              कंही वृक्ष पर डालर होंगे उन्हें तोड़ ले जाउंगी ,
                             डालर वृक्ष का छोटा पौधा अपनें आँगन में लगाउंगी |
डालर वृक्ष नहीं दिखता है यह कैसा अमरीका है ?
मन में कितना सूना पन है यह कैसा अमरीका है |
 
 
 



Bindeshwari Aggarwal
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15 comments:

Sanjay Grover said...

इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽऽऽ
(और बधाई भी देता चलूं...)

महेंद्र मिश्र.... said...

एक स्वप्न था अमरीका में भारत नया बनानें का,
अपनें देश की महिमा की ध्वजा यंहा फहराने की |
भारत की संस्कृति को जन मानस तक पहुचानें की .
वेद और गीता के सार को हर घर तक ले जानें की|
लेकिन सब कुछ है विपरीत यंहां पर न संस्कृति न गीता है.
मन में कितना सूना पन है यह कैसा अमरीका है|

बहुत बढ़िया रचना.आभार.

रचना गौड़ ’भारती’ said...

मेरा भारत महान
नववर्ष् की शुभकामनाएं
कलम से जोड्कर भाव अपने
ये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

ghughutibasuti said...

बढ़िया !
घुघूती बासूती

नीरज गोस्वामी said...

एक अप्रवासी भारतीय के दर्द को बहुत खूबसूरती से उकेरा है आपने...उन सब को जो अपना वतन छोड़ कर भौतिक सुखों के लालच में दूर देश चले जाते हैं उन्हें ये कविता जरूर पढ़नी चाहिए.
नीरज

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

स्वागत है हिन्दी ब्लोग जगत मेँ आपका -
भौतिक सुख तो भारत मेँ
ज्यादा थे
( more luxuries & help )
पर मेरा तो यही विश्वास है कि ,
बहुत कुछ हमारी
सारी की हुई व्यवस्था से परे भी जिम्मेदार है हमारे
भविष्य के लिये
जो अज्ञात होता है ..
सो, जहाँ रहेँ, खुश रहेँ !
आपको
२००९ के आगामी नव -वर्ष की
बहुत शुभ कामनाएँ -
- लावण्या
-

Prakash Badal said...

सारे जहां से अच्छा हिन्दोसतां हमारा।


आपका ब्लॉग की दुनिया में स्वागत।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

यह कैसा अमरीका है
सब साधन संम्पन्न यंहा फिर भी मन सूना - सूना है.
मन में कितना सूनापन है यह कैसा अमरीका है|

िबंदेश्वरी जी
बहुत प्रभावशाली और यथाथॆपरक रचना है । िवदेश के प्रित मोह के संदभॆ में आपकी पंिक्तयां वास्तिवकता को िजस सुंदर तरीके से अिभव्यक्त करती हैं, वह बडा हृदयस्पशीॆ है । भाव और िवचार के समन्वय ने रचना को मािमॆक बना िदया है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है- आत्मिवश्वास के सहारे जीतंे िजंदगी की जंग-समय हो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

अभिनव said...

बहुत बढ़िया कविता है ये. ब्लागवाणी पर आपको पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. आशा है की आगे भी आपकी रचनायें साहित्यजगत एवं ब्लागजगत को लाभान्वित करती रहेंगी.

Harshad Jangla said...

Nice and thoghtful poem.
Welcome to the blog world.
Happy New Year.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Unknown said...

हिन्दी चिठ्ठा विश्व में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरी समस्त शुभकामनायें आपके साथ हैं… एक अर्ज है कि कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें ताकि टिप्पणी करने में कोई बाधा न हो… धन्यवाद…

RADHIKA said...

ब्लॉग जगत में आपका बहुत बहुत स्वागत ,आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर और भावात्मक हैं ,भारत में बैठ के सोचते हैं अमेरिका शायद जन्नत होगा ,सच्चाई तो वही पता लगती हैं ,फिलहाल आर्थिक मंदी के चलते अमेरिका की आर्थिक हालत भी बिघड ही गई हैं .

अभिषेक मिश्र said...

अमेरिका में भारत को याद करने का अच्छा प्रयास. शुभकामनाएं.

प्रदीप मानोरिया said...

अति मोहक प्रस्तुति तुम्हारी ,मनहर ह्रदय को छूने वारी

Nandini said...

America me base adhikansh pravasi bhartiyon ke man ki bhavnaon ko apne apni kavita roopee mala me piroya hai. Asha hai or accha parne ko jaldi milega