Thursday, January 1, 2009

पाती

भारत से आई थी पहली जो पाती उस पाती को पढ़ कर बहुत थी मैं रोयी,
पाती को पलटा पलट कर के देखा किसकी थी पाती समझ में न आई|
जिसनें भी भेजी थी प्रेम की पाती उसमें किसी का पता ही नहीं था,
बड़ी कोशिश की निर्रथक रही थी यही सोच कर मैं बड़ी देर रोई
भारत से आई थी पहली जो पाती उस पाती को पढ़ कर बहुत थी मैं रोयी,
भाई ने भेजा कि बहनों ने भेजा कि मेरे किसी हितैषी ने भेजा,
इतना था मालुम कि जिसनें भी भेजा उसने बहुत रो रो कर लिखा था.
धुल गये थे अक्षर सभी आँसुओं से यही देख कर मैं बिलख कर के रोई|
भारत से आई थी पहली जो पाती उस पाती को पढ़ कर बहुत थी मैं रोयी,
जो कुछ भी अक्षर बचे थे उस खत में उन अक्षरों को जोड़ा मिलाया,
आधे अधूरे उन शब्दों में देखा तो एक सम्पू्र्ण शब्द माँ बचा था,
माँ शब्द को फिर ह्रदय से लगाकर बड़ी देर सिसकी बड़ी देर रोई|
भारत से आई थी पहली जो पाती उस पाती को पढ़ कर बहुत थी मैं रोयी,

1 comment:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

pati pane wala bhee dhanay or likhane wala bhee. aaj kal to pati likhane wala koi virla hee hoga.magar jisane likhi wah janta hai iska mahatav. narayan narayan